गीता के बारे में जैसा कि आप लोग जानते ही होंगे की इसमें ७०० श्लोक, १८ अध्याय हैं. लेकिन एक ऐसा श्लोक जो पूरी गीता में दो बार आया है. कहा जाता है अगर कोई चीज़ एक से ज़्यादा बार बोली जाती है तो ज़रूर ही उसका कुछ महत्त्व होता है. यह पहली बार 9वें अध्याय के 34वें श्लोक के रूप में आया है.
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।। ९.34 ।।
जिसका मतलब है- तू मेरा भक्त हो जा। मेरे में अपना मन रमा ले. मेरा पूजन करने वाला हो जा और मुझको को नमस्कार कर। इस प्रकार मेरे साथ अपने आपको लगाकर। मेरे परायण हुआ तू मुझे को ही प्राप्त होगा।
फिर यही बात दूसरी बार १८वें अध्याय के ६५ वें श्लोक में कही गयी है.
2. मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु |
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे:|| 18.65||
जिसका मतलब होता है-
हे अर्जुन ! तू मुझमें मन लगा ले , मेरा भक्त बन, मेरा पूजन करने वाला हो और मुझको प्रणाम कर। ऐसा करने से तू मुझे में ही प्राप्त होगा, यह मैं तुझसे सत्य प्रतिज्ञा करता हूँ क्योंकि तू मेरा अत्यंत प्रिय है।
इसलिए इस श्लोक की महत्ता बढ़ जाती है, और ईश्वर को समझाने और समझने के लिए इस श्लोक को आज भी याद किया जाता है और इसका उदहारण दिया जाता है.
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