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माँ नौडेरा दाई सती धाम की कहानी

माँ नौडेरा दाई सती धाम- एक हकीकत जो आज कहानी बन गई 


जब आप NH-31 से लखनऊ से बनारस की तरफ 117 किलोमीटर का सफर तय करते हैं, तो प्रतापगढ़ जिले की सीमा शुरू हो जाती है। उसी ज़िले में एक मंदिर है, उस मंदिर की अपनी एक कहानी है। 
जब आप प्रतापगढ़ जिले के सुवंसा बाजार में प्रवेश करते है, वहाँ से तकरीबन 800 मीटर बाये अंदर की तरफ जाने पर  एक ऐसी जगह मिलती है  है, जहाँ आपके कदम जाने के लिए विवश हो उठेंगे, लोग इस जगह को नौडेरा दाई सती धाम के नाम से जानते है।
माँ नौडेरा दाई की कहानी आज से तकरीबन 750 साल पहले, 14वीं सदी में अफगान के क्रूर शाशक अलाउद्दीन खिलजी के शासन काल की है
स्थानीय लोगों का कहना है, यहां एक टीला है जिस पर मुगल सैनिक रहते थे, मुगल हिन्दू या अन्य धर्म की लड़कियों के साथ अभद्र व्यवहार एवं यौन शोषण करते थे और उन्हें कई तरह की यातनाएं देते थे ताकि उन्हें उनके समाज से बहिष्कृत कर दिया जाय और मुग़ल आसानी से उन पर हावी हो सकें। लोगों का यह भी कहना है कि आज जहां नौडेरा दाई (सती धाम ) का स्थल है वहाँ से उत्तर की ओर से यादव कुल की लड़की का एक डोला (लड़की का विदा होकर ससुराल जाने की परंपरा ) कहार लेकर आ रहे थे। यह देखकर मुगल शासक कहार को डोला रोकने और लड़की को डोले से बाहर लाने का आदेश देता है, यह सब देखकर लड़की घबरा जाती है. और धरती माँ से गुहार लगाती है,  "हे धरती माँ आज मेरी आत्मसम्मान की रक्षा करो।" फिर एका-एक धरती फट जाती है और लड़की धरती माँ की गोद में समाहित हो जाती है. जब इस बात का पता उसकी माँ को चलता है, लड़की की माँ रोते-बिलखते वहाँ पहुँचती है, जहाँ लड़की समाहित हुई थी. वहां से कुछ ही दूर करीब लगभग 70 मीटर पूर्व दिशा में उसकी माँ भी अपना दम तोड़ देती है। उधर जब मुगल डोले का पर्दा हटाते हैं तो लड़की नहीं दिखाई देती। इस घटना के बाद से वहाँ से मुग़ल पलायन कर जाते हैं। जहाँ वह लड़की समाहित हुई थी उस स्थान का नाम नौडेरा दाई सती धाम एवं जहाँ लड़की की माँ दम तोड़ती उस स्थान को बुढ़िया माई के नाम से जाना जाता है।
आज वहाँ पर उनकी एक काल्पनिक मूर्ति स्थापित की गई हैं और उस स्थल पर एक भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है जिसकी ऊँचाई लगभग 60 फ़ीट है, जो प्रतापगढ़ जिले का आकर्षण का एक केंद्र है इस मंदिर को बनवाने में मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान के बहुत से लोगो का आर्थिक सहयोग मिला है
       यहाँ हर साल शारदीय नवरात्रि में दुर्गा पंडाल सजाया जाता है जिसे राजस्थान के मंदिरों की तर्ज पर बनाया जाता है। दूर - दराज के लोग इस मंदिर में दर्शन - पूजन करने आते हैं. लोगों का मानना है की यहाँ आकर उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। 





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2 टिप्पणियाँ

  1. हृदय के अंतः करण से बहुत-बहुत धन्यवाद
    भैया जी ❤️🌷

    जब ये मेरे गाँव की कहानी आपने प्रकाशित करने के लिए चयनित किया तो मैंने अपनी खुशी का इजहार अपने मां जी♥️ के सामने किया । मेरी मां बहुत खुश थी उस वक्त ! अद्भुत था वो क्षण मेरे जीवन के लिए ।

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    1. शुक्रिया प्रशांत, आप जैसे युवा लेखकों का हमेशा स्वागत है.

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