हरिशंकर परसाई अपनी व्यंग के लिए मशहूर हैं। उन्होंने समाज के किसी भी हिस्से को अपनी लेखनी से छोड़ा नहीं। इनके कुछ कोट्स इस प्रकार हैं
अंधभक्त होने के लिए प्रचंड मूर्ख होना अनिवार्य शर्त है।
आत्मविश्वास कई प्रकार का होता है, धन का, बल का, ज्ञान का। लेकिन मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है।
धर्म अच्छे को डरपोक और बुरे को निडर बनाता है।
राजनीति में शर्म केवल मूर्खों को ही आती है।
ग़रीबों के साथ धोखों का अविष्कार करने के मामले में अपना देश बहुत आगे है।
हम मानसिक रूप से दोगले नहीं तिगले हैं। संस्कारों से सामन्तवादी हैं, जीवन मूल्य अर्द्ध-पूँजीवादी हैं और बातें समाजवाद की करते हैं।
धार्मिक उन्माद पैदा करना, अंधविश्वास फैलाना, लोगों को अज्ञानी और क्रूर बनाना; राजसत्ता, धर्मसत्ता और पुरुष सत्ता का पुराना हथकंडा है |
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