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किसान के ही देश में किसानों को खत्म करने की भूल

 


जब आप धनपशुओं की चटवाली सॉरी रखवाली करने लगते हैं। तो अपना वजूद खोने लगते हैं, और यह स्वाभाविक भी है। जैसे किसान के ही देश में किसानों को न समझ पाना। उन्हीं को ख़त्म करने की कोशिश करना। उन हुक्मरानों को शायद यह इल्म नहीं कि आज भी किसान तुम्हारे निकम्मेपन की करीब ७० प्रतिशत भरपाई कर रहे हैं। यह वह खाटी नस्ल है जो नेता का भी बाप होता है, अभिनेता का भी बाप होता है, कलेक्टर का भी बाप होता है, सीमा पर तैनात सिपाही का भी बाप होता है, किसी प्राइवेट कम्पनी में कार्यरत मैनेजर का भी बाप होता है। फिर भी अपनी असलियत नहीं खोता। उसे मरते दम तक खुद के किसान होने पर ही गर्व होता है। ऐसा नहीं कि चाय बेचने और भीख मांग कर खाने के बाद लाखों का कोट पहन ५६ इंच का सीना (स्वयं एवं अंधभक्तों द्वारा सर्टिफाइड) तान और चेहरा बदल अपनों को ही डराने लगे।

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